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जयमल-कल्ला की छतरियाँ

दुर्ग के द्वितीय-द्वार को पार करते ही दाहिनी ओर दो छतरियाँ दिखाई देती हैं। चार खम्भों वाली छोटी छतरी राठौड़ जयमल के सम्बन्धी कल्ला का स्मारक है तथा उसके पास ही छह स्तम्भो वाली बड़ी छतरी स्वंय राठीड़ जयमल का स्मारक है।"

इन छतरियों से आगे चलने पर दुर्ग का तीसरा प्रवेश द्वार 'हनुमान पोल' है जहां एक छोटा-सा

हनुमानजी का मन्दिर है। इस द्वार के बाद सड़क की चढ़ाई बढ़ने लगती है तथा आगे सड़क के घुमाव पर

"राठौड़ जयमल मारवाड़ के मेड़तिया वंश के थे। इनका जन्म 17 सितम्बर सन् 1500 ई. में हुआ तथा मेवाड़ के राव वीरमदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। सन् 1567 ई. में मेड़ता का किला अकबर के अधीन चला गया तो जयमल वहां से चित्तौड़ के राणा के पास, मुगलों की सेना के विरूद्ध, उनकी सहायता के लिये आये। महाराणा ने उन्हें बदनोर की जागीर दी थी। सन् 1567 ई. में जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया उस समय महाराणा किले का उत्तरदायित्व राठौड़ जयमल तथा सिसोदिया पत्ता पर छोड़ कर चले गये थे। दुर्ग की रक्षा करते हुए जब जयमल पैर से घायल हो गये तो उन्होंने अपने सम्बन्धी कल्ला के कन्धे पर बैठकर अकबर की सेना का मुकाबला किया तथा लड़ते-लड़ते दोनों वीरगति को प्राप्त हुए। ये छतरियां उन्हीं की याद में बनी हुई हैं। लक्ष्मण-पोल से सड़क उत्तर की ओर जाती है तथा हम दुर्ग के सातवें व प्रमुख प्रवेश द्वार 'राम पोल' पर पहुंचते हैं। यह द्वार भारतीय स्थापत्यकला एवं हिन्दू संस्कृति का प्रतीक है। राम पोल पश्चिमभिमुख है तथा उसमें प्रवेश करते ही दाहिनी ओर श्री रामचन्द्रजी का मन्दिर है। जहाँ से दुर्ग के आन्तरिक भाग में जाने के लिए दो मार्ग है- एक उत्तर की ओर जाता है तथा दूसरा दक्षिण की ओर दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थानों को जाता है।

चौथा प्रवेश द्वार 'गणेश-पोल' आता है। इस प्रवेश द्वार पर गणेशजी का मन्दिर विद्यमान है। दुर्ग का पांचवा व छठा प्रवेश द्वार क्रमशः 'जोड़ला-पोल' व 'लक्ष्मण-पोल' है जो सड़क के दूसरे घुमाव पर आते हैं। लक्ष्मण-पोल पर लक्ष्मण जी का छोटा-सा मन्दिर स्थित है।

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